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प्रति॑ प्र॒याण॒मसु॑रस्य वि॒द्वान्त्सू॒क्तैर्दे॒वं स॑वि॒तारं॑ दुवस्य। उप॑ ब्रुवीत॒ नम॑सा विजा॒नञ्ज्येष्ठं॑ च॒ रत्नं॑ वि॒भज॑न्तमा॒योः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati prayāṇam asurasya vidvān sūktair devaṁ savitāraṁ duvasya | upa bruvīta namasā vijānañ jyeṣṭhaṁ ca ratnaṁ vibhajantam āyoḥ ||

पद पाठ

प्रति॑। प्र॒ऽयान॑म्। असु॑रस्य। वि॒द्वान्। सु॒ऽउ॒क्तैः। दे॒वम्। स॒वि॒तार॑म्। दु॒व॒स्य॒। उप॑। ब्रु॒वी॒त॒। नम॑सा। वि॒ऽजा॒नन्। ज्येष्ठ॑म्। च॒। रत्न॑म्। वि॒ऽभज॑न्तम्। आ॒योः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:49» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मेघ का कारण क्या है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जन (विद्वान्) विद्वान् ! आप (सूक्तैः) अच्छे अर्थों को कहनेवाले वेद के विभागों से (असुरस्य) मेघ की (प्रयाणम्) यात्रा का और (देवम्) प्रकाशित होते हुए (सवितारम्) मेघ को उत्पन्न करनेवाले का (प्रति) प्रत्यक्ष में (दुवस्य) सेवन करो और (नमसा) अन्न आदि के दानरूप सत्कार से (ज्येष्ठम्) अत्यन्त प्रशंसा करने योग्य (रत्नम्) धन को (च) भी (विजानन्) विशेष करके जानता हुआ (आयोः) जीवन के (विभजन्तम्) विभाग करते हुए को (उप, ब्रुवीत) कहें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! सूर्य्य ही मेघ आदिकों का उत्पन्न करनेवाला है, उसकी विद्या का उपदेश दीजिये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मेघस्य कारणं किमस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे जन विद्वांस्त्वं सूक्तैरसुरस्य प्रयाणं देव सवितारं प्रति दुवस्य नमसा ज्येष्ठं रत्नञ्च विजानन्नायोर्विभजन्तमुप ब्रुवीत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) प्रत्यक्षे (प्रयाणाम्) यात्राम् (असुरस्य) मेघस्य (विद्वान्) (सूक्तैः) सुष्ठ्वर्थवाचकैर्वेदविभागैः (देवम्) देदीप्यमानम् (सवितारम्) मेघोत्पादकम् (दुवस्य) सेवस्व (उप) (ब्रुवीत) (नमसा) अन्नाद्येन सत्कारेण (विजानन्) (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्यम् (च) (रत्नम्) धनम् (विभजन्तम्) (आयोः) जीवनस्य ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! सूर्य्य एव मेघादीनामुत्पादकोऽस्ति तद्विद्यामुपदिशत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! सूर्यच मेघ इत्यादींना उत्पन्न करतो तेव्हा त्याच्या विद्येचा उपदेश करा. ॥ २ ॥